Thursday, May 6, 2010

कदम -कदम पर धोखा


कब और कौन सी घटना धोखे का रूप में परिवर्तित हो जाय, कहना मुश्किल है। आज की परिस्थिति तो लोगों को और ही संदिग्ध बना देती है। कहते हैं सभी का नजरिया अलग-अलग होता है। इन हालात में समाज के आइने में अपने को पाक साबित करना तो शायद बेहद कठिन है। हम जो भी करते हैं सबसे पहले अपना हित देखते हैं। इसके बाद अपने से जुड़े लोगों का और फिर समाज का। हो सकता है यहां पर हम गलत हों। दोस्त... इसमें मेरी कोई गलती नहीं, यह इस समाज और इसके कारिंदों की देन है। जो हमें समय-समय पर बदलने पर मजबूर करती है। हम समझ ही नहीं पाते कि किस रास्ते में जाएं और किसका साथ दें। ऐसे में हम समाज के उन लोगों में पहचाने जाने लगते हैं, जिन्हें लोग मक्कार, बेइमान और मतलबपरस्त समझते हैं। बेवजह ही हमेें इतनी उपाधियां मिल जाती हैं जिन्हें संभालने के लिए हमें कलेजा और मजबूत करना पड़ता है। ऐ दोस्त...देखो तो सही हम बात धोखे और फरेब की कर रहे थे और खुद ही टॉपिक से भटक गए थे , शायद ऐसे ही लोगों के कदम बहक जाते हैं। क्या इन हालात में उन्हंे गुनाहगार मानना सही होगा...........

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