Saturday, December 18, 2010

सफर में सबसे आगे

राह और राही दानों ही एक दूसरे के पथिक होते हैं। यदि राही भटक रहा हो तो राह उसे सही दिशा में लाता है। और यदि राह भटक जाए तो राही उसे दुरुस्त करने का काम करता है। अब आप सोच कर परेशान न हों कि राह और राही के बीच में मैं आपकों झुला रखंूगा। बस थोड़ा सब्र करो मैं आपको मंजिल तक ले चलता हूं। गांव की बारात थी। ऊपर से बारिश का मौसम था। हम और हमारी मौसी का लड़का यानि रिश्ते का मौसेरा भाई दोनों ही बाइक से बारात का मजा लेने के लिए चल निकले। हमें शायद ही पता थ्ाा कि रास्ते में इतनी मुशीबतों का सामना करना पड़ेगा। पर हुआ ऐसा ही। पहली घटना- हम अपनी तैयारियों में इतने मशगूल हो गए कि समय का खयाल ही न रहा। और हम घर से ही देर से निकले ।ह।हल्की रिमझिम बारिश हो रही थी। बाइक में दोनों ही तेजी से मंजिल की ओर बढ़े जा रहे थे। रास्ते के खड्डे और कीचड़ ये सब हमारे सफर के गवाह बन रहे थे। इन्हीं गवाहों के बीच हमारे लिए पहली मुशीबत खड़ी हो गई। और बाइकी की हेडलाइट बिगड़ गई। फिर भी हम निराश नहीं हुए। और अपने अनुमान के मुताबिक चल रहे थे। कुछ ही किलोमीटर का सफर हुआ था और घ्ानघोर अंधेरा हो गया। अब हमें चारो ओर रास्ते दिखाई देने लगे। हम तय नहीं कर पा रहे थ्ो जाएं किस ओर । जहां भी हमें रोशनी दिखाई देती उसी ओर रुख कर लेते। अब हम बाइक पर नहीं पैदल चल रहे थे और बाइक हमारे लिए बोझ बन गई थी। उसे घसीटते हुए हम थकान से चूर हो गए। राहगीर और गांव वालों की मदद से हम धीरे-धीरे अपने जश्न वाले गांव के नजदीक पहुंच गए। दोनांें ही इस बात का पर चर्चा कर रहे थे कि मौसम अच्छा न हुआ तो अब कभी भी किसी की बारात में न जाएंगे। किसी कदर कीचड़ और रास्ते में भटकते हुए हम बारात वाले गांव गए। वहां देखा तो अंधेरा ही अंधेरा । ऐसा आलम देखकर बारिश से भीगे होने के बाद भी गर्मी लगने लगी और तो और जलालत भी महसूस हुई।फिर भी हम जनमास में पहुंचे । लोगों ने आवभगत में कोई कोर कसर न लगाई। चाय-नास्ता हुआ । खाना-पीना भी हुआ। अब तो आराम करने के लिए कोई सूखी जगह की तलाश थी पर वह नशीब न होने वाली थी।यह थी दूसरी हिट - बारात में पहुंचने के बाद जब बाइक स्टार्ट की तो एक ही किक में स्टार्ट हो गई और लाइट भी जल गई। यह देखकर अच्छा खासा हंसी मजाक हो गया। और रतजगा करने के बाद किसी भी तरीके से सुबह हुई। यह थी तीसरी हिट- बारात बिदा होने हम भी चले कि कुछ ही दूर में पेट्रोल खत्म हो गया। और हम पेट्रोल की तलाश में फिर पैदल चल निकल पड़े। दो किलोमीटी चलने के बाद हमें दुकान मिली । लेकिन उसके पास पेट्रोल नहीं था। वह घर से पेट्रोल लेकर आया और हमें दोगुने दाम पर पेट्रोल दिया। इस तरह हमारा न भूलने वाली बारात का सफर पूरा हुआ। दोनों ही घर पहुंचे। और अपनी मरम्मत में जुट गए। सबसे दयनीय हालत तो पैरों की थी, जिसे जूते भी न बचा पाए। काटों ने पैरों को जगह-जगह पर निशाना बनाया था । ये कांटे महीनों हमें बारात के जश्न की याद दिलाते रहे।

1 comment:

  1. Kya baat hai Bhai... Maza to khoob aaya hoga... Yaadgaar pal pa lie apne!!!


    RAM

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