Friday, November 13, 2009

कुछ आस है

हाँ, यह एक सच है की हम सब कुछ न कुछ पाना चाहते हैं। पर यह कैसे मिले तय नही कर पाते । सोचते समझते वक्त निकल जाता है और हम वक्त को कोसने लगते है। धीरे- धीरे मन की बातें मन में रह जाती हैं और हम अपनी चाहत को ही खो बैठते हैं। विवशता यह है की हम अपने से अधिक दूसरे पर भरोसा करते है ।
...................... सो अब वक्त बदल गया है। लोग की मांग बदली है। इतना ही ही नही अधिकांश ने छद्म रूप धारण कर लिया है। ए़से में हम किसके साथ है और किसका साथ हमें अधिक भायेगा। ख़ुद ही तय करना होगा । विश्वास की बुनियाद को कायम रखते हुए अपने लिए नए रस्ते बनाने चाहिए। यह येसा अस्त्र है जो हमें बुलंदी की राह तक लेकर जाएगा और हमारा सच्चा साथी साबित होगा ।

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